मुँह देखते हैं हज़रत / अकबर इलाहाबादी

मुँह देखते हैं हज़रत, अहबाब पी रहे हैं

क्या शेख़ इसलिए अब दुनिया में जी रहे हैं

मैंने कहा जो उससे, ठुकरा के चल न ज़ालिम
हैरत में आके बोला, क्या आप जी रहे हैं?

अहबाब उठ गए सब, अब कौन हमनशीं हो
वाक़िफ़ नहीं हैं जिनसे, बाकी वही रहे हैं