अफ़्सोस है / अकबर इलाहाबादी

अफ़्सोस है गुल्शन ख़िज़ाँ लूट रही है

शाख़े-गुले-तर सूख के अब टूट रही है

इस क़ौम से वह आदते-देरीनये-ताअत
बिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है