जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है सूरज जल कर कितने दिलों को ठंडा करता है …
Read moreजब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा हर मंज़र-ए-शब ख़्वाब की दीवार लगेगा पल भर मे…
Read moreहाँ यही शहर मेरे ख़्वाबों का गहवारा था इन्ही गलियों में कहीं मेरा सनम-ख़ाना था …
Read moreघुटन अज़ाब-ए-बदन की न मेरी जान में ला बदल के घर मेरा मुझ को मेरे मकान में ला मे…
Read moreफ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे सारे परिंद शाख़-ए-समर-दार से उठे दीवार ने क़…
Read moreदूर तक बस इक धुंदलका गर्द-ए-तंहाई का था रास्तों को रंज मेरी आबला-पाई का था फ़स्…
Read moreदिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से कैसी तंहाई टपकती है दर ओ दीवार से मंज़िल…
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