हो न रंगीन तबीयत / अकबर इलाहाबादी


हो न रंगीन तबीयत भी किसी की या रब

आदमी को यह मुसीबत में फँसा देती है

निगहे-लुत्फ़ तेरी बादे-बहारी है मगर
गुंचए-ख़ातिरे-आशिक़ को खिला देती है