आँख में आँसू का / अकबर हैदराबादी

आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है

है तमन्ना का वही जो ज़िंदगी का हाल है

यूँ धुआँ देने लगा है जिस्म ओ जाँ का अलाओ
जैसे रग रग में रवाँ इक आतिश-ए-सय्याल है

फैलते जाते हैं दाम-ए-नारसी के दाएरे
तेरे मेरे दरमियाँ किन हादसों का जाल है

घिर गई है दो ज़मानों की कशाकश में हयात
इक तरफ ज़ंजीर-ए-माज़ी एक जानिब हाल है

हिज्र की राहों से 'अकबर' मंज़िल-ए-दीदार तक
यूँ है जैसे दरमियाँ इक रौशनी का साल है.