जो खुल गई कभी मुझ पर मुनफ़िक़त अपनी
मैं ख़ुद से मिल के कभी साफ़ साफ़ कह दूँगा
मुझे पसंद नहीं है मुदाख़ेलत अपनी
मैं शर्म-सार हुआ अपने आप से फिर भी
क़ुबूल की ही नहीं मैं ने माज़रत अपनी
ज़माने से तो मेरा कुछ गिला नहीं बनता
के मुझ से मेरा तअल्लुक़ था मारेफ़त अपनी
ख़बर नहीं अभी दुनिया को मेरे सानेहे की
सो अपने आप से करता हूँ ताज़ियत अपनी