किसी को इसकी ख़बर नहीं है मरीज़ का दम निकल रहा है
फ़ना[2] उसी रंग पर है क़ायम, फ़लक वही चाल चल रहा है
शिकस्ता-ओ-मुन्तशिर[3] है वह कल, जो आज साँचे में ढल रहा है
यही बदन नाज़ से पला था जो आज मिट्टी में गल रहा है
अभी तक ख़ाक भी उड़ेगी जहाँ यह क़ुल्जुम[9] उबल रहा है
यहाँ भी एक बामुराद ख़ुश है, वहाँ भी एक ग़म से जल रहा है
उरूजे-क़ौमी ज़वाले-क़ौमी, ख़ुदा की कुदरत के हैं करिश्मे
हमेशा रद्द-ओ-बदल के अन्दर यह अम्र पोलिटिकल रहा है
मज़ा है स्पीच का डिनर में, ख़बर यह छपती है पॉनियर में
फ़लक की गर्दिश[13] के साथ ही साथ काम यारों का चल रहा है